यह भी हमारी बड़ी विचित्र कामना है। भला कोई हमें समझे ही क्यों? क्या बुद्ध को उनके पिता कभी समझ पाए थे? क्या महावीर की लड़की प्रियदर्शनी को महावीर से शिकायतें नहीं थी? क्या मीरा के पति ने मीरा को समझा था? क्या सोक्रेटिज को उनकी पत्नी कभी समझ पाई थी? तो फिर आपकी यह जिद्द बेबुनियाद नहीं कि कोई आपको समझे? अरे, नहीं समझना तो छोड़ो, सोचो यह कि इन सबने भी अपने को समझकर ही यह महानता पाई थी। यदि ये लोग भी हमारी तरह “दूसरे समझें” ऐसी जिद्द लेकर बैठे होते तो आज इन्हें कोई जानता ही न होता। सो, आप भी दूसरा आपको समझे उसकी जिद्द छोड़ो और अपने को अच्छे से समझ लो। …आपका उद्धार हो जाएगा।
April 24, 2015