आपकी मशीन में गड़बड़ आपके मन में आने व जाने वाले वे भाव हैं जिनपर आपका कोई नियंत्रण नहीं। और उसे ठीक कराने आप मंदिर, मस्जिद व चर्चों में मैकेनिक खोजते रहते हैं। लेकिन समझते क्यों नहीं कि आप कोई वस्तु थोड़े ही हैं जिसे ठीक करने के मैकेनिक बाजार में उपलब्ध हों। आपका मन तो कुदरत की बनाई ऐसी मशीन है जिसे बिगाड़ भी सिर्फ आप सकते हैं तथा उसे ठीक भी सिर्फ आप ही कर सकते हैं। हां, उपायों की प्रेरणा आपको जरूर बाहर से लेनी है, और वह बुद्ध, क्राइस्ट व कृष्ण जैसे पचासों विशेषज्ञ आपको दे ही चुके हैं। मजा यह कि वे सारे सबको मुफ्त में उपलब्ध हैं। बस उन्हें समझकर अपने मैकेनिक स्वयं बन जाओ। भला इस हेतु दूसरों के गैरेज चलाने की क्या आवश्यकता है? वे तो घाघ हैं, आप कार्बोरेटर में कचरे की शिकायत लेकर जाते हैं और वे दूसरी हजार बीमारियां दिखलाकर आपकी गाड़ी ही गैरेज में भरती कर देते हैं। सो चेतो, और बन जाओ अपने मैकेनिक स्वयं…फिर घुमाओ गाड़ी सड़कों पर बिंदास, कौन रोकता है?
-दीप त्रिवेदी